Facts about Govardhan Parvat Mathura India

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Զเधे Զเधे जी…….🌹🙏

“रोज एक मुठ्ठी कम होता है गोवर्धन पर्वत।

“मथुरा नगर (उत्तर प्रदेश) के पश्चिम में लगभग 21 किमी की दूरी पर यह पहाड़ी स्थित है। यहीं पर गिरिराज पर्वत है जो 4 या 5 मील तक फैला हुआ है। इस पर्वत पर अनेक पवित्र स्थल है। पुलस्त्य ऋषि के श्राप के कारण यह पर्वत एक मुट्ठी रोज़ कम होता जा रहा है। कहते हैं इसी पर्वत को भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी अँगुली पर उठा लिया था। गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है। गर्ग संहिता में गोवर्धन पर्वत की वंदना करते हुए इसे वृन्दावन में विराजमान और वृन्दावन की गोद में निवास करने वाला गोलोक का मुकुटमणि कहा गया है।

पौराणिक मान्यता अनुसार श्री गिरिराजजी को पुलस्त्य ऋषि द्रौणाचल पर्वत से ब्रज में लाए थे। दूसरी मान्यता यह भी है कि जब राम सेतुबंध का कार्य चल रहा था तो हनुमान जी इस पर्वत को उत्तराखंड से ला रहे थे लेकिन तभी देव वाणी हुई की सेतु बंध का कार्य पूर्ण हो गया है तो यह सुनकर हनुमानजी इस पर्वत को ब्रज में स्थापित कर दक्षिण की ओर पुन: लौट गए। पौराणिक उल्लेखों के अनुसार भगवान कृष्ण के काल में यह अत्यन्त हरा-भरा रमणीक पर्वत था। इसमें अनेक गुफ़ा अथवा कंदराएँ थी और उनसे शीतल जल के अनेक झरने झरा करते थे। उस काल के ब्रज-वासी उसके निकट अपनी गायें चराया करते थे, अतः वे उक्त पर्वत को बड़ी श्रद्धा की द्रष्टि से देखते थे। भगवान श्री कृष्ण ने इन्द्र की परम्परागत पूजा बन्द कर गोवर्धन की पूजा ब्रज में प्रचलित की थी, जो उसकी उपयोगिता के लिये उनकी श्रद्धांजलि थी।

भगवान श्री कृष्ण के काल में इन्द्र के प्रकोप से एक बार ब्रज में भयंकर वर्षा हुई। उस समय सम्पूर्ण ब्रज जल मग्न हो जाने का आशंका उत्पन्न हो गई थी। भगवान श्री कृष्ण ने उस समय गोवर्धन के द्वारा समस्त ब्रजवासियों की रक्षा की थी। भक्तों का विश्वास है, श्री कृष्ण ने उस समय गोवर्धन को छतरी के समान धारण कर उसके नीचे समस्त ब्रज-वासियों को एकत्र कर लिया था, उस अलौकिक घटना का उल्लेख अत्यन्त प्राचीन काल से ही पुराणादि धार्मिक ग्रन्थों में और कलाकृतियों में होता रहा है। ब्रज के भक्त कवियों ने उसका बड़ा उल्लासपूर्ण कथन किया है। आजकल के वैज्ञानिक युग में उस आलौकिक घटना को उसी रूप में मानना संभव नहीं है। उसका बुद्धिगम्य अभिप्राय यह ज्ञात होता है कि श्री कृष्ण के आदेश अनुसार उस समय ब्रजवासियों ने गोवर्धन की कंदराओं में आश्रय लेकर वर्षा से अपनी जीवन रक्षा की थी।

।। राधे राधे जी ।।

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